अलविदा भी न कहा
तुम्हारी गाड़ी के चालु होने की आवाज़ से मेरी दोपहर की नींद टूटी. मै उत्साहपूर्वक गाड़ी में कूद पड़ा - इस अपेक्षा से कि आज फिर कहीं दूर कि सैर पर चलेंगे.
उस रोज़ रास्ते कि हर गंघ मेरे लिए नई जान पड़ती थी - जैसे उन में भी किसी रहस्य का तत्व हो.
गाड़ी से उतरा तो संपूर्ण भूभाग में नवता पायी. उस पर से तुम्हारे करो के बीच मुझे मेरा प्रिय खिलौना दीख पड़ा.
मै प्रफुल्लित हो तुमसे लिपट गया.
तुमने फेंका और मै झट दबोच लाया. तुमने और दूर फेंका, मै फिर से ले आया.
तुम्हे यह ज्ञात था कि यह मेरा पसंदीदा खेल है. पर आने वाली परिस्थिती से मै अज्ञात था.
इस बार तुमने पूरी जान से मेरी फ्रिस्बी को दूर - बहुत दूर फ़ेंक दिया.
मै पूरे आवेग से दौड़ा, किन्तु अपनी फ्रिस्बी को मुह में दबोच कर जब पलटा तो दृश्य को बेहद भयावना पाया.
बात को समझ पाने की कशमकश में अपने खिलौने को मैंने और जोर से जकड़ लिया.
क्या गलती हुई मुझसे? क्यूँ तोड़ रहे हो तुम मुझसे अपना सम्बन्ध?
क्यूँ ऐसा कि तुम हो कुलीन और मै तुम्हारे अधीन?
मेरे आतंकित मन और भयवश थरथराते तन कि तुमने कोई परवाह न की.
अपनी गाड़ी लेकर तुम गायब हो गए शाम कि उस गोधुली में.
मुझे पीछे छोड़ गए एक निर्जान खिलौने के सहारे. बैठा रहा मै टकटकी लगाये, पूरी निष्ठा से, तुम्हारे इंतज़ार में.
मेरे पीछे का सूर्य क्षीण हो चला और संपूर्ण परिवेश गहरा गया.
दिन ढलते गए, शामें जाती रहीं. तुम्हारे इंतज़ार में मै वहीं पड़ा रहा.
तुम्हे ताकते - ताकते बस ये ही सोचता रहा - हमारे धवल सम्बन्ध का इतना धूमिल अंत क्यूँ?
अपनी आखिरी सांस के साथ मैंने अंतिम बार तुम्हारा नाम लिया और अपनी वेदना से वहीँ ढेर हो गया.
क्यूँ तुमने मुझे न चाहा मालिक? क्यूँ न कि मेरी परवाह?
क्या मै तुम्हारे लिए बस एक झबरीले बालो वाली लार टपकाती वस्तु था?
मै वहीं पर पड़ा रहा मालिक तुम्हारे इंतज़ार में, पर शायद मेरा ख़याल रखना तुम्हारे लिए बोझ था.
अब मै नही हूँ मालिक, अब हम भी नही बचे - मै और तुम.
पर अब भी बचा है एक प्रशन - क्यूँ तुमने एक बार अलविदा भी न कहा?
Inspired from a popular English poem - http://jaagruti.org/2011/10/03/an-abandoned-pet-you-didnt-even-say-goodbye/
Inspired from a popular English poem - http://jaagruti.org/2011/10/03/an-abandoned-pet-you-didnt-even-say-goodbye/